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पेरियार ई.वी. रामासामी
**पेरियार ई.वी. रामासामी का जीवन परिचय:**
पेरियार ई.वी. रामासामी (एरोड वेंकटप्पा रामासामी) भारत के महान समाज सुधारक, राजनीतिक नेता, और तर्कवादी विचारक थे। उन्हें अक्सर "पेरियार" के नाम से जाना जाता है, जिसका तमिल में अर्थ है "महान व्यक्ति"। पेरियार का जन्म 17 सितंबर 1879 को तमिलनाडु के इरोड जिले में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग जाति प्रथा, अंधविश्वास, धार्मिक पाखंड और महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए बिताया।
### **प्रारंभिक जीवन:**
पेरियार का जन्म एक धनी और पारंपरिक हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता वेंकटप्पा नायकर एक व्यापारिक व्यक्ति थे, जो ईश्वर, धर्म और धार्मिक कर्मकांडों में विश्वास रखते थे। पेरियार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ईरोड में ही प्राप्त की, लेकिन उन्होंने बहुत जल्दी ही औपचारिक शिक्षा छोड़ दी और अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाना शुरू कर दिया।
### **विचारधारा और प्रारंभिक संघर्ष:**
पेरियार का जीवन एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब वे 1904 में काशी (वाराणसी) की तीर्थ यात्रा पर गए। वहाँ उन्होंने देखा कि तीर्थयात्रियों को जाति के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता था, और तथाकथित "ऊंची जाति" के लोग "निचली जाति" के लोगों के साथ दुर्व्यवहार करते थे। इस घटना ने पेरियार को गहरे रूप से प्रभावित किया और उन्हें धार्मिक और सामाजिक व्यवस्थाओं के प्रति सवाल उठाने के लिए प्रेरित किया।
इसके बाद, पेरियार ने समाज सुधार के कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू कर दिया। उन्होंने जाति प्रथा, अंधविश्वास और पाखंड का विरोध किया और सभी के लिए समान अधिकारों की मांग की।
### **द्रविड़ आंदोलन और पेरियार का योगदान:**
पेरियार 1919 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए, लेकिन जल्द ही उन्होंने महसूस किया कि पार्टी में उच्च जातियों का प्रभुत्व है और यह संगठन निम्न जातियों के हितों की उपेक्षा करता है। इस बात से निराश होकर, उन्होंने 1925 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और **"सेल्फ रेस्पेक्ट मूवमेंट"** (स्वाभिमान आंदोलन) की स्थापना की। इस आंदोलन का उद्देश्य समाज में स्वाभिमान, समानता, और आत्म-सम्मान की भावना का प्रचार करना था।
**स्वाभिमान आंदोलन के मुख्य सिद्धांत:**
1. **जाति प्रथा का विरोध:** पेरियार ने जाति प्रथा के विरुद्ध जोरदार आंदोलन चलाया। उन्होंने जाति प्रथा को समाज की सबसे बड़ी बुराई बताया और इसे समाप्त करने के लिए संघर्ष किया।
2. **महिलाओं के अधिकार:** पेरियार ने महिलाओं की समानता और उनके अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई। उन्होंने दहेज प्रथा, बाल विवाह, और सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं का विरोध किया और महिलाओं को शिक्षा और स्वतंत्रता देने की वकालत की।
3. **धार्मिक पाखंड का विरोध:** पेरियार ने धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास का खुलकर विरोध किया। उन्होंने मंदिरों में मूर्ति पूजा और धार्मिक कर्मकांडों की आलोचना की और कहा कि धर्म का सही उद्देश्य मानवता की सेवा होना चाहिए, न कि कुछ लोगों का शोषण।
4. **भाषाई और सांस्कृतिक समानता:** पेरियार ने तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में हिंदी थोपने के विरोध में आंदोलन किया और अपनी भाषा और संस्कृति के संरक्षण की बात की।
### **पेरियार और राजनीति:**
पेरियार ने 1938 में **"द्रविड़ कड़गम"** (द्रविड़ पार्टी) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में द्रविड़ संस्कृति और भाषा को बढ़ावा देना था। द्रविड़ कड़गम ने सामाजिक समानता, महिलाओं के अधिकार, और जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए जोरदार अभियान चलाया। इस पार्टी के आंदोलन ने आगे चलकर द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) और अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) जैसी राजनीतिक पार्टियों के गठन का मार्ग प्रशस्त किया।
### **पेरियार की विरासत:**
पेरियार का योगदान भारतीय समाज में अविस्मरणीय है। उन्होंने अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से तमिलनाडु और पूरे भारत में सामाजिक सुधारों की नींव रखी। उनके आंदोलनों ने लाखों लोगों को प्रेरित किया और समाज में समानता, स्वाभिमान, और मानवता के मूल्यों को मजबूत किया। पेरियार का जीवन और उनकी शिक्षाएं आज भी समाज में बदलाव के लिए प्रेरित करती हैं और लोगों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देती हैं।
### **निष्कर्ष:**
पेरियार ई.वी. रामासामी एक महान समाज सुधारक और तर्कवादी विचारक थे, जिन्होंने अपने जीवन के हर पहलू में सामाजिक समानता और न्याय की वकालत की। उन्होंने जाति प्रथा, अंधविश्वास, धार्मिक पाखंड, और महिलाओं के साथ भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया और एक ऐसे समाज की कल्पना की जहाँ सभी लोग समान हों और सभी को समान अधिकार मिलें। पेरियार की शिक्षाएं और उनका योगदान आज भी समाज में प्रासंगिक हैं और हमें एक समान और न्यायपूर्ण समाज की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।

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